बुधवार, 12 नवंबर 2014

औरतें...


जानवरों की
तरह करिए
हमारे शरीर पे प्रयोग...
उनके हक़ में
बोलने वाले हैं
कई संगठन
वो कर देंगे
झंडा बुलंद..
ज़ुबान है
लेकिन
हम बेज़ुबानों से
बदतर हैं...
काश हम
सुअर से नापाक़ होते
काश हम 
गाय से पूजनीय होते...
क्योंकि
हो जाते हैं
इनके नाम पे दंगे
बंट जाते हैं लोग...
अपने-अपने धरम का परचम लेके...
लेकिन देखो
कोई हमारी मौत पे लड़ने वाला नहीं है
कोई हम पर अपना अधिकार जताने वाला नहीं है
हम औरतें हैं...
गरीब परिवारों की
बेसहारा..औरतें...
हम जानवरों सी भी नहीं हैं
हमें काट दीजिए कहीं से भी
हमें फेंक दीजिए कहीं पे भी...
कोई सवाल नहीं करेगा
कोई आह नहीं भरेगा
किसी को नहीं पड़ेगा फर्क
कोई नहीं निकालेगा 
हमारे लिए रैलियां
कोई नहीं रोएगा 
हमारी मौत पे
क्योंकि 
हम औरतें
जानवरों से भी बदतर हैं....

बुधवार, 23 जुलाई 2014

मौत का सामान

किसी पे लिखा है
मेड इन चाइना
किसी पर लिखा है
मेड इन अमेरिका
कोई है
मेड इन रशिया
तो कोई
मेड इन पाकिस्तान...
हर मुल्क
तैयार कर रहा है
मौत का सामान...
कोई धर्म के नाम पे
कोई संप्रदाय के लिए
कोई खुद के लिए
कोई ख़ुदा के नाम पे...
कोई ज़मीन के टुकड़े के लिए
तो कोई एक पट्टी के खातिर
दाग़ रहा है मिसाइल
कर रहा है क़त्ल ए आम...
टुकड़ों में बटंती ज़मीन
ख़ून से लथपथ इंसानियत
लोथड़ों में तब्दील मासूम...
लेकिन सब हैं
खामोश, सब हैं शून्य..
किसी को नहीं फ़िक्र
किसी को नहीं परवाह
सब फैला रहे हैं
अपना साम्राज्य
सब बना रहे हैं
मौत का सामान...

गुरुवार, 19 जून 2014

विश्वास ही तो है

विश्वास ही तो है
तुम्हारे मेरे प्यार की डोर
यक़ीन ही तो है
जिसने मिलाया है हमें
पहली बार
पहली नज़र में
दिल नहीं हारी थी मैं
तुम्हें देख के
विश्वास ही तो हुआ था
की तुम्हीं हो
मेरे लिए...
ख़ुदा ने
यक़ीन ही तो कराया था
की इसे ही
बनाया है तुम्हारे लिए
यक़ीन ही तो था
जो बिना सोचे
बिना जाने
तुमसे मांग लिया तुम्हें
ये भरोसा ही तो था तुम्हारा
जो संग हो लिए मेरे
तुम्हारे मेरे
रिश्ते की नींव
में विश्वास ही तो है
चलो इसी
विश्वास के साथ
जी लेते हैं
प्यार का पौधा
बड़ा कर लेते हैं....

रविवार, 2 मार्च 2014

मुझे भी बताना

जो सवाल
हरदम तुम
मुझसे करते हो
कभी
खुद भी
तलाशा है उसका जवाब
कभी जानने की
कोशिश की है कि
क्यों है
तुम्हें बेइंतेहा इश्क़
क्यों
छोटी छोटी
बातों की परवाह करते हो
मेरी मुस्कराहट के लिए
कुछ भी कर गुज़रते हो
उदासी भगाने  के लिए
क्यों जतन करते हो
क्यों तुम्हें
परेशान कर जाती है
मेरी खामोशी
क्यों
नही देख पते
मुझे निराश...
हर लम्हा
हर वक़्त
बस मेरी ख़ुशी
आखिर क्यों
जब तलाश लो
इनकी वजह
तो मुझे भी बताना
मैं भी
पता करुँगी
क्यों बन गए हो
तुम मेरी ख़ुशी
कब बन गए
तुम मेरी ज़िन्दगी

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

दग़ाबाज़ दोस्त....

कितने प्यार से
कितने अपनेपन से
तुमने दिया है धोखा
सबसे करीब होने का
दावा भी किआ था तुमने
अपने हर ज़ख़्म को
खोल के दिखाया था तुम्हें
अपने हर दर्द का
सांझेदार माना था तुम्हें
नम आँखों को दुनिया
से छुपाया हर दम
एक तुम ही थी
जिसे अपने अंदर की
बवंडर से मिलवाया था
आज हैरान हूँ
समझ नहीं पा रही
कि तुमने ऐसा क्यों किआ
मेरी पीठ पे छुरा क्यों घोंपा
तुम तो मेरी दोस्त थी
फिर क्यों
मेरे दर्द का
मेरी ज़िन्दगी का
तमाशा बना दिआ
गलती तुम्हारी नहीं
शिकायत खुद से है
मैंने तुमपे ऐतबार जो किआ
जाओ खुश रहो तुम
जाओ और तमाशा बनाओ तुम
लेकिन याद रखना
मुझसे मेरे हिस्से कि
खुशियां कोई नहीं छीन सकता
तुम भी नहीं
मेरी सबसे अच्छी दग़ाबाज़ दोस्त....

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

बेवजह...

सुना था कि
बेवजह कुछ नहीं होता
यक़ीन भी तो था
कि हर बात की
वजह होती है....
हाँ
जब तुम ज़िन्दगी में
शामिल हुए तो
वजह नहीं तलाशी थी
हाँ
जब तुम बेहद क़रीब थे
तो सोचा नहीं था कुछ भी
सब कुछ बेवजह था....
हमारा रिश्ता
हमारी ख़ुशी
हमारा सच
लेकिन
एक दिन
जब तुम
अचानक चले गए
ज़िन्दगी से
तो सवाल करती हूँ
खुद से
तुमसे...
जवाब नहीं है
कोई वजह नहीं थी
तुम्हारे आने कि
और
कोई वजह नहीं है
तुम्हारे जाने कि भी
हाँ
बहुत कुछ होता है
बेवजह....

रविवार, 12 जनवरी 2014

कुछ तो बाकी है


कुछ तो बाकी है
तुम्हारे मेरे दरमियां 
कुछ तो बाकी है...
भले प्यार ना हो पर 
एहसास अब भी बाकी है... 
भले नफ़रत ना हो पर 
नाराज़गी अब भी बाकी है
कुछ तो बाकी है
तुम्हारे मेरे दरमिया
कुछ तो बाकी है... 
तुम्हें पानी की कोशिश नहीं की 
पर मेरी ज़िंदगी में 
तेरी मौजदूगी अब भी बाकी है 
तुम चल दिए अपने रास्तों पर 
लेकिन मेरे सफ़र में 
तेरा साथ अब भी बाकी है 
कुछ तो बाकी है
तुम्हारे मेरे दरमिया
कुछ तो बाकी है... 
जानते हो तुम सबकुछ 
मान लेती हूं आसानी से 
लेकिन  
तुम ज़िंदगी से चले गए 
ये सच मानना अब भी बाकी है... 
कुछ तो बाकी है 
तेरे मेरे दरमियां 
कुछ तो बाकी है.

क्या तुम्हें याद है...


क्या तुम्हें याद है
जब हम मिले थे पहली बार...
तुम भी चुप थे
और मैं भी खामोश थी...
अजीब सा सन्नाटा था
हमारे आसपास....
फिर भी बहुत कुछ
चल रहा था दिलो दिमाग में..
कई सवाल कौंध रहे थे मन मैं
ना जाने क्या क्या पूछना चाह रही थी
लेकिन चुप थी
डर था
पता नहीं तुम क्या
सोचोगे मेरे बारे में...
तुम्हें चोरी-चोरी देख रही थी
और जब लगता कि तुम
देख रहे हो तो नज़रें झुका लेती...
सारी हिम्मत जुटा के
मैने पूछा था तुमसे
क्यों चुप हो...
तुमने कहा था
तुम्हारी खामोशी पढ़ रहा हूं...
क्यों नाराज़ हो खुद  से
ये सवाल किया था मुझसे
कोई जवाब नहीं था मेरे पास....
पहली बार कोई था
जिसने पढ़नी चाही थी मेरी खामोशी
जिसने सन्नाटे में भी
महसूस कर ली थी मेरे अंदर की हलचल
मुझे याद रहेगी
हमारी पहली मुलाकात

क्या तुम्हें भी याद है...

शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

तुम्हारी ज़िद...


तुम्हारी ज़िद है
मुझे हराने की
और मेरी ज़िद है
तुम्हें पाने की...
तुम लाख कोशिश कर लो
मुझसे दूर रहने की
मुझे अपनी यादों
जुदा रखने की
लेकिन
हार तय है तुम्हारी
मेरे अस्तित्व को
नकार नहीं सकते तुम
मेरे प्यार से
इंकार नहीं कर सकते तुम
यक़ीन है मुझे
खुद पर,
खुदा पर,
उसके वजूद पर
एक दिन जीतूंगी मैं
और हारोगे तुम
तुम नहीं हरा सकते मुझे
तुम नहीं थका सकते मुझे
तुम नहीं तोड़ सकते मेरी हिम्मत

तुम नहीं दे सकते मुझे शिकस्त....