रविवार, 22 दिसंबर 2013

करते हैं एक शुरुआत...

चलो फिर से
करते हैं एक शुरुआत
फिर से बन जाते हैं अजनबी
इस तरह जैसे
नदी के दो धारे...
इस तरह
जैसे सुबह और शाम
चलो फिर से
करते हैं एक शुरुआत
वहां से
जहाँ हम मिले थे
वहां से
जहाँ से हम बिछड़े थे
वहां से
जहाँ जुदा हो गईं थी हमारी राहें
चलो फिर से
करते हैं एक शुरुआत....
तुम हम
अब एक संग हो लेते हैं
एक रास्ता
और एक मजिल कर लेते हैं
चलो फिर से
करते हैं एक शुरुआत....

3 टिप्‍पणियां:

Misra Raahul ने कहा…

बहुत खूब निदा जी....
कभी पधारिए हमारे ब्लॉग पर भी.....
नयी रचना
"फ़लक की एक्सरे प्लेट"
आभार

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही बढ़िया

सादर

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति!!