शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

आज एक ख्वाब हो तुम...

आज एक
ख्वाब हो गए
कल तुम
सच थे मेरा...
मैंने तो कभी
नहीं माँगा था
साथ तुम्हारा
तुमने ही
हाथ बढाया...
क्यों आये
मेरे करीब
नहीं समझ पाई...
खुश तो
अब भी हूँ
बस इक सवाल
का जवाब नहीं
तलाश पा रही
तुम क्यों
बन गए पहेली
जिसे मैं सुलझा नहीं पा रही
तुम क्यों
चले गए
बिना कुछ कहे...
परेशान नहीं
बस इक बार
आ जाओ
कह दो मुझसे
की तुम इक ख़वाब थे
तब भी जब
मैं हकीकत मान बैठी थी तुम्हें....

2 टिप्‍पणियां:

Misra Raahul ने कहा…

निदा जी...
काफी उम्दा रचना....बधाई...
नयी रचना
"ज़िंदगी का नज़रिया"
आभार

संजय भास्‍कर ने कहा…

प्रेममय सुंदर भावों की अभिव्यक्ति !!