बुधवार, 14 अगस्त 2013

कैसी आज़ादी..



जब सारा देश डूबा हुआ था 
आज़ादी के जश्न में 

मैं ढ़ो रहा था 
अपनी ग़रीबी का बोझ,
चिंता थी..
मां रात को चूल्हे में क्या पकाएगी,
कहीं आज भी न सोना पड़े 
पानी पीकर
छोटे भाई बहनों को 
कैसे समझाएगी मां,
जब सारा देश मना रहा था 
स्वतंत्रता का पर्व
मैं तलाश रहा था 
आज़ादी के मायने
पूरा देश आज़ाद था
उड़ा रहा था खुशियों की पतंगें
और मैं 
कटी हुई पतंगों को 
लूटने में जुटा था
आज रात भले दो रोटी न मिले लेकिन
लुटी हुई पतंग पाने की खुशी तो है,
आज बिना खाए ही 
सो जाएंगे..
पतंगों के सहारे 
आज़ादी का जश्न मनाएंगे !